हरगोविंद खुराना का जन्म 9 जनवरी 1922 को पंजाब के एक छोटे से गांव रायपुर में हुआ था जो कि अब पाकिस्तान में है पर पांच भाई बहनों में से सबसे छोटे थे उनके पिता पटवारी थे उस समय ब्रिटिश भारत में कृषि कराधान क्लर्क के रूप में कार्य कर रहे थे
खुराना की आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी बाद में उन्होंने मुल्तान के डीएवी हाई स्कूल में प्रवेश लिया उन्होंने 1943 में लाहौर में स्थित पंजाब विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की उसके बाद सन् 1945 में उन्होंने स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की उन्होंने अपने पीएचडी कार्य के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल को चुना और सन 1948 में वहां से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की उन्होंने स्विट्ज़रलैंड के फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से से पोस्ट डॉक्टरेट शोध कार्य किया जहां उनकी मुलाकात एस्थर से हुई जो बाद में उनकी पत्नी बनी बाद में उन्होंने वैंकूवर मैं ब्रिटिश कोलंबिया अनुसंधान परिषद में नौकरी की जहां कार्य करते हुए उन्होंने प्रोटीन और न्यूक्लिक अम्लों पर कार्य किया जो उनका विज्ञान जगत में प्रमुख योगदान है। खुराना ने सन 1960 में विस्कॉन्सिन विश्व विद्यालय में कार्य किया और बाद में 10 वर्ष उन्होंने मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में कार्य करते हुए बताएं।
डॉक्टर पुराना को मार्शल वारेन नीरेंद्र वर्ग तथा रॉबर्ट विलियम होली के साथ सन 1968 में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया यह पुरस्कार उन्हें संयुक्त रूप से किए गए अनुवांशिक कूट की व्याख्या तथा प्रोटीन संश्लेषण इसके कार्य हेतु प्रदान किया गया था बाद में उन्होंने एमआईटी में जो विज्ञान और रासायनिक विज्ञान के अल्फ्रेड पी सीलन के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया भारत सरकार ने उन्हें सम्मानित करते हुए सन् 1969 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
चिकित्सा सम्मान के के अलावा अल्बर्ट लश्कर सम्मान , नेशनल मेडल फॉर साइंस , अनीस आइसलैंड मेडल ऑफ ऑनर आदि अनेक प्रख्यात सम्मान ओ से सम्मानित किया गया इन सबके बावजूद वह जीवन भर सहज बनकर प्रचार की चकाचौंध से दूर रहें।
नोबेल पुरस्कार लेने के बाद लिखी अपनी टिप्पणी में डॉक्टर खुराना ने लिखा था निर्धन होने के बावजूद मेरे पिता अपने बच्चों की शिक्षा के लिए समर्पित थे और जिस गांव में लगभग 100 लोग बसते थे उसमें हमारा परिवार व्यवहार था एकमात्र साक्षर परिवार था अपने पिता के पद चिन्हों पर चलते हुए डॉ खुराना ने आधी सदी के दौरान हजार दो विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान की वह अपनी अगली पर योजना और प्रयोग में और अधिक रुचि से कार्य करते और इसी से उनकी प्रसिद्धि बढ़ती गई वह पंजाब के एक छोटे से गांव के एक गरीब परिवार में जन्मे थे लेकिन उनके बुद्धिमत्ता और कार्यों ने उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में अमर बना दिया 9 नवंबर 2011 को डॉ हरगोविंद खुराना की कान कार्ड मैसाचुसेट्स में मृत्यु हुई।
Comments
Post a Comment