खगार राजवंश चंद्रवंशीय क्षत्रियों की यशस्वी शाखा है लगभग 5000 ईसा पूर्व महाभारत के युद्ध के पश्चात चंद्रवंश के क्षत्रिय पश्चिमोत्तर आर्यावर्त में आधुनिक तेहरान तक फैल गए थे वहां राज्य स्थापित करके यूनानियो से कई युद्ध किए । यूनानी इतिहासकार "कार्टियस" न्यूनान के इतिहास में इनका पर्याप्त वर्णन किया है । इन चंद्रवंशीय क्षत्रियों के पूर्वजों ने गजपुर आधुनिक गजनी ( अफगानिस्तान) और पाकिस्तान में स्यालकोट , पुरुश पुर ( पेशावर) , बहावलपुर आदि शहर बसाए एवं आधुनिक भारत में गोविंदगढ़ ( भटिंडा) , जैसलमेर आदि शहर बसाए। पश्चिमोत्तर भारत में चंद्रवंश के प्रमुख क्षत्रियों में जैसलमेर का भाटी राजवंश , कच्छ और भुज का जडेजा राजवंश और जूनागढ़ सौराष्ट्र के खंगार राजवंश थे।
सौराष्ट्र जूनागढ़ में खगारों के पूर्वज चूड़ासमा राजवंश ने सातवीं सदी तक अपना राज्य स्थापित कर लिया था प यह राज्य लगभग 700 वर्षों तक रहा जूनागढ़ राज्य का मंडोवर (जोधपुर के पास) राज्य से घनिष्ठ संबंध था मंडोवर में परिहार, खंगार राजवंश की ही एक शाखा राज्य कर रही थी। जूनागढ़ के खंगारो ने कई उपाधि धारण किए थे जैसे कि परिहार ,खंगार ,मांडलिक सूरजमल, रूपल आदि प्रमुख थे इन राजाओं ने मोहम्मद गजनवी अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद तुगलक से कई युद्ध किए थे अलाउद्दीन खिलजी द्वारा आक्रमण करके सोमनाथ के मंदिर को तोड़े जाने के बाद राय दबास और उसके पुत्र राय खंगार ने सोमनाथ के मंदिर का प्रख्यात जीर्णोद्धार कराया था यहां के खंगार राजा राय महिपाल उपनाम गजराज की पुत्री जग मोहिनी का विवाह महोबा के बछराज के पुत्र मलखान से हुआ था जूनागढ़ में खंगार राज्य लगभग 700 वर्षों तक रहा सन 1472 एसपी में अहमदाबाद के शासक महमूद शाह बेगड़ा द्वारा राजा राय राजा मांडलिक को हराने के बाद इस राज्य का अंत हुआ।
केदार गढ़कुंडार झांसी से 20 मील उत्तर पूर्व की ओर टीकमगढ़ जिले में स्थित है जूनागढ़ के महाराज राय रूढ़देव के पुत्र महाराजा खेत सिंह खंगार ने सन 1182 इसवी में गढ़कुंडार में खंगार राज्य स्थापित किया महाराजा खेत सिंह खंगार दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान के प्रिय मित्र थे राजा राय पिथौरा पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद भारत वर्ष से तुर्कों के खदेड़ने के महाराजा खेत सिंह ने बहुत से क्षत्रियों के राज्य खंगार संघ बनाया था गढ़कुंडार के अंतिम राजा मानसिंह ने सन 1347 ईस्वी में मोहम्मद तुगलक के साथ हुए भीषण युद्ध में राजकुमारी कुंवर केसर दे एवं अन्य छत्रिय रानियोंके साथ जौहर व्रत कराने के उपरांत खंगार क्षत्रियों के साथ शाका व्रत किया और इस युद्ध में गढ़ कुंडार राज्य का सूर्यास्त हो गया।
16 वीं सदी के प्रारंभ में महमूद शाह बेगड़ा से विद्रोह कर मेदनी राय खंगार ने चंदेरी में एक बार फिर से खंगार राज्य की नींव डाली मेदनी राय खंगार और मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह सिसोदिया उपनाम राणा सांगा के आत्मीय संबंध थे 16 मार्च 1526 ईस्वी में आगरा के पास खानवा के मैदान में राणा सांगा के पक्ष में मेदनी राय खंगार ने अपने 6000 सैनिकों के साथ वह मैनपुरी के मालक राव चौहान अपने 4000 सैनिकों के साथ बाबर के विरुद्ध इतिहास में प्रसिद्ध युद्ध किया परंतु तोपों के बल पर बाबर की जीत हुई वह महाराणा सांगा अस्सी घाव लगने के साथ घायल हुए।
मेदनी राय खंगार बाबर की आंख में खटक रहे थे और बाबर ने 29 जनवरी 1528 को चंदेरी में आक्रमण कर दिया कई महीने चले इस युद्ध में अंततः मेदिनी राय अपनी बची हुई सेना के साथ शाका का व्रत करके युद्ध में शहीद हुए धनुर्विद्या में निपुण खंगार महारानी मणि माला ने विश्वासघात करने वालों को यमलोक पहुंचा कर प्राणियों के साथ जौहर व्रत कर लिया इतिहासकार पंडित श्रवण कुमार त्रिपाठी अपनी रचना आग और सुहाग सिंपल प्रकाशन आवास विकास हंसपुरम कानपुर के श्री राम सिंह खंगार द्वारा प्रकाशित में लिखते हैं कि इस जौहर व्रत की लपटें साथ में 20 मील दूर से देखी गई थी जो चित्तौड़गढ़ में महारानी पद्मिनी के जौहर के बाद भारतीय इतिहास में दूसरा बड़ा जौहर था
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